
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी तेल आयात के लिए भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का फैसला किया। इसके बाद भारतीय वस्तुओं पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लग गया है। अमेरिकी टैरिफ एलान के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा कि हाल के दिनों में अमेरिका ने रूस से भारत के तेल आयात को निशाना बनाया है।
सरकार ने कहा है कि हम इन मुद्दों पर पहले ही अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं। इनमें यह तथ्य शामिल है कि हमारा आयात बाजार की परिस्थितियों पर आधारित है। इसका मकसद भारत की एक अरब 40 करोड़ आबादी की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। भारत ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और तर्कहीन करार दिया। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी साफ-साफ कहा कि टैरिफ के मसले पर भारत अपने हितों के साथ कतई समझौता नहीं करेगा।
भारत के अलावा चीन भी रूस का बड़ा व्यापारिक साझेदार है। चीन भारत के मुकाबले करीब दोगुना रूसी तेल का आयात करता है। फिर भी अमेरिका ने चीन को 90 दिनों की मोहलत दे दी है। हम इसका भी कारण समझेंगे, पहले समझते हैं टैरिफ के कारण भारत को क्या नुकसान उठाना पड़ सकता है।
टैरिफ से भारत को कितने बड़े नुकसान का अंदेशा?
कुछ जानकारों का मानना है कि अमेरिका की ओर से भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ के एलान से भारत का कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने वाला। भारत के 95% निर्यात को अमेरिकी टैरिफ से नुकसान की आशंका नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत का कुल निर्यात 820 अरब डॉलर का था। जिसमें टैरिफ के कारण प्रभावित होने वाला हिस्सा महज 4.8% ही है। इसका मतलब है कि केवल लगभग 40 अरब डॉलर का भारतीय निर्यात ही अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित हो सकता है। बाकी 780 अरब डॉलर के भारतीय निर्यात पर कोई प्रभाव पड़ने की फिलहाल आशंका नहीं है। जानकारों के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटो पार्ट्स, धातु और सेवा क्षेत्र पर फिलहाल टैरिफ से प्रभावित होने की आशंका नहीं है।
रूस से चीन भी तेल खरीद रहा, फिर भी अमेरिका नरम, जानें क्यों
- संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि (USTR) के अनुसार 2024 में, अमेरिका और चीन के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार लगभग $658.9 अरब था। इसमें से, अमेरिका का चीन को निर्यात $143.54 अरब था, और चीन से अमेरिका का आयात $462.63 अरब था।
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका 2024-25 में लगातार चौथे वर्ष भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 131.84 अरब डॉलर रहा। इन आंकड़ों से समझ सकते हैं कि अमेरिका और चीन के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार हो रहा है। चीन भारत का भी बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- चीन 2024-25 में 127.7 अरब डॉलर के दोतरफा वाणिज्य के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा।
इससे पता चलता है कि अमेरिका का व्यापार चीन के साथ कहीं ज्यादा है और एक हद तक वे चीन पर निर्भर है। इसकी वजह से अमेरिका रूसी तेल आयात को लेकर चीन को नजरअंदाज कर रहा है। अमेरिका चीन के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को खराब नहीं करना चाहता।
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वैश्विक व्यापार में टैरिफ को हथियार की तरह क्यों इस्तेमाल कर रहे ट्रंप?
अमेरिका शुरू से ही चीन का मुकाबला करने में भारत को अपना रणनीतिक साझेदार मानता है। लेकिन अब बात सिर्फ भू-राजनीतिक कारणों की नहीं रह गई, इसमें इकोनॉमीक एंगल को भी शामिल कर लिया गया है। ट्रंप अपनी बात मनवाने के लिए टैरिफ को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत और रूस के गहरे होते ऊर्जा संबंध अमेरिका के हिंद-प्रशांत रणनीति में उसकी भूमिका से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण दिखाई दे रहे हैं।
भारत और रूस के संबंध से ट्रंप को क्यों हो रही दिक्कत?
ये टैरिफ स्पष्ट रूप से रूस के साथ भारत के बढ़ते व्यापार से जुड़े हैं। भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। इसमें एक तिहाई से अधिक तेल रूस से आता है। भारत ने साल 2024 में रोज लगभग 1.8 मिलियन बैरल रूसी कच्चा तेल खरीदा, जो कि रूस के कुल तेल निर्यात का लगभग 37 प्रतिशत है।
भारत ने क्यों लिया था रूस से तेल खरीदने का फैसला?
साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान कई देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए थे, जिसके चलते कच्चे तेल की कीमतें 137 डॉलर/बैरल पहुंच गईं थीं। उस समय भारत ने ज्यादा से ज्यादा मात्रा में रूस से तेल खरीदकर वैश्विक स्तर पर डिमांड और सप्लाई के बीच बैलेंस बनाया था, जिसकी वजह से कीमतें ज्यादा ऊपर नहीं जा पाईं थीं। यह भारत द्वारा लिए गया एक रणनीतिक कदम था। ट्रंप के अनुसार भारत का यह कदम न्यायापूर्ण नहीं था। हालांकि भारत ने साफ किया कि दूसरे देशों के नजरअंदाज करके केवल भारत पर निशाना साधना बेबुनियाद है। भारत ने आरोप लगाया कि अमेरिका और उसके सहयोगी रूस के साथ यूरेनियम और पैलेडियम जैसे सामानों का व्यापार जारी रखे हुए हैं।
क्या ट्रंप भारत को रूस से दूर करने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे?
यह ट्रेड वॉर सिर्फ तेल तक निर्भर नहीं है। रूस के साथ भारत के रक्षा संबंध इसकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण, दीर्घकालिक स्तंभ हैं। इसके 60% से अधिक सैन्य उपकरण मास्को से प्राप्त होते हैं। यह निर्भरता भारत के लिए रूस को एक महत्पूर्ण रणनीतिक साझेदार बनाती है। ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ को व्यापक रूप से “भू-राजनीतिक दबाव” की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। भारत पर दीर्घकालिक सहयोगी रूस से संबंध जारी रखने या अमेरिका के साथ अपने संबंधों का चयन करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की जा रही है।