
केरल में सोमवार को राजनीतिक विवाद तब शुरू हो गया, जब राजभवन ने विश्वविद्यालयों को 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ के रूप में मनाने का निर्देश दिया। सरकार और विपक्ष दोनों ने इस कदम की कड़ी निंदा की।
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस कदम को आपत्तिजनक बताया और कहा, ‘संघ परिवार के विभाजनकारी राजनीतिक एजेंडे से जुड़ी कार्ययोजनाओं को राजभवन से जारी करना असांविधानिक है।’ इस पर राजभवन के एक सूत्र ने कहा कि ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ पर परिपत्र जून में जारी किया गया था और यह केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों पर आधारित था।
राज्यपाल का परिपत्र भेजने का कदम आपत्तिजनक: विजयन
सीएम विजयन ने कहा कि राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर द्वारा कुलपतियों को 14 अगस्त को विभाजन के भय को याद करने के दिन के रूप में मनाने के लिए एक परिपत्र भेजने का कदम आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा, ‘हम अपने विश्वविद्यालयों को इस तरह के एजेंडे को लागू करने के मंचों में बदलने की अनुमति नहीं दे सकते।’
राजभवन ने विश्वविद्यालयों को ये दिया था निर्देश
परिपत्र में, राजभवन ने कथित तौर पर निर्देश दिया था कि विश्वविद्यालय ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ मनाने के लिए सेमिनार आयोजित कर सकते हैं। इसमें कहा गया था कि वे इस विषय पर नाटक भी कर सकते हैं, जिन्हें जनता के बीच प्रदर्शित करके दिखाया जा सकता है कि विभाजन कितना ‘भयानक’ था। इसमें कथित तौर पर कुलपतियों को इस संबंध में विश्वविद्यालयों की कार्ययोजनाएं भी भेजने का निर्देश दिया गया था।
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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान न देने वाले स्वतंत्रता दिवस को कमजोर करने की कोशिश कर रहे: विजयन
सीएम विजयन ने आरोप लगाया कि 15 अगस्त को भारत अपनी आजादी के 78 साल पूरे कर रहा है। यह वह दिन है जो साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष और उसे कुचलने के लिए अंग्रेजों द्वारा किए गए क्रूर अत्याचारों को भी याद दिलाता है। स्वतंत्रता दिवस के साथ-साथ एक और दिन मनाने का प्रस्ताव संघ परिवार के वैचारिक थिंक टैंकों से आया है। उन्होंने दावा किया कि जिन लोगों का ‘स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं था और जिन्होंने ब्रिटिश राज की सेवा की’, वही अब ‘स्वतंत्रता दिवस को कमजोर’ करने की कोशिश कर रहे हैं।
ये वही लोग, जिन्होंने विदेशी ताकतों से लड़ने में नहीं दिखाई दिलचस्पी
मुख्यमंत्री विजयन ने यह भी आरोप लगाया कि ये वही लोग हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विदेशी ताकतों से लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, बल्कि तथाकथित ‘आंतरिक दुश्मनों’ को निशाना बनाने में अपनी ऊर्जा खर्च की। उन्होंने आरोप लगाया कि ये वही लोग हैं जो अब ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की मांग कर रहे हैं, जिससे स्वतंत्रता दिवस का महत्व कम हो गया है।
मुख्यमंत्री ने संघ परिवार पर भी हमला बोला
मुख्यमंत्री विजयन ने संघ परिवार पर भी हमला बोला। उन्होंने दावा किया कि अंग्रेजों के पूर्व सेवक शायद ये भूल गए हैं कि भारत का विभाजन और विभाजन के बाद के दंगे भी ‘अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति’ का ही परिणाम थे। उन्होंने आरोप लगाया, ‘संघ परिवार वही समूह है, जिसने महात्मा गांधी का भी मजाक उड़ाया था, जिन्होंने विभाजन के दौरान भड़के दंगों पर हिंसा को दबाने की कोशिश की थी।’
संघ परिवार की आज भी ब्रिटिश वायसराय से मिले लोगों जैसी मानसिकता
सीएम विजयन ने यह भी दावा किया कि संघ परिवार आज भी उन्हीं लोगों जैसी मानसिकता रखता है, जो कभी ब्रिटिश वायसराय से मिले थे, उनका खुलकर समर्थन किया था और यह स्पष्ट किया था कि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ नहीं हैं। विजयन ने दावा किया, ‘जिस राजनीति ने भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से मुंह मोड़ लिया था, जिसमें विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एकजुट थे, वही राजनीति अब विभाजन के डर की बात कर रही है।’
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शिवनकुट्टी और सतीशन ने राज्यपाल के अधिकार पर उठाया सवाल
राज्य के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी और विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने भी मंत्रिपरिषद की मंजूरी के बिना ऐसा परिपत्र जारी करने के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के अधिकार पर सवाल उठाया। शिवनकुट्टी ने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने इसे ऐसे जारी किया है, मानो वे जनता द्वारा निर्वाचित मंत्रिपरिषद की मंजूरी के बिना ‘समानांतर शासन व्यवस्था’ चला रहे हों। शिवनकुट्टी ने कहा, ‘मुझे समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने किस अधिकार से ऐसा निमंत्रण जारी किया है। उनके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है। राज्यपाल की शक्तियां सीमित हैं, और इसे रोजमर्रा के प्रशासन से नहीं जोड़ा जा सकता, जैसा कि अदालतें और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं।’
राज्यपाल ने किस अधिकारी से विभाजन विभीषिका दिवस मनाने का निर्देश दिया: सतीशन
सतीशन ने पूछा कि राज्यपाल को किस अधिकार से विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को एक परिपत्र के माध्यम से ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ मनाने का निर्देश दिया गया, जिससे राज्य सरकार को प्रभावी रूप से दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने दावा किया, ‘राज्यपाल का राज्य सरकार के समानांतर निर्णय लेना और कार्य करना असांविधानिक है। ऐसा करके, एक सांविधानिक पद पर आसीन विश्वनाथ आर्लेकर केरल को खुलेआम बता रहे हैं कि वह अभी भी आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्यपाल का यह कदम असांविधानिक है।’