
भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान छक्कों या स्ट्राइक रेट से नहीं, बल्कि क्रीज पर बिताया समय, धैर्य और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आक्रमणों का दिलेरी से सामना करने से मापा जाता है। उस दौर में भारतीय बल्लेबाजी की तुलना अगर किसी भव्य इमारत से करें तो कोहली उसके वास्तुकार थे लेकिन इसकी नींव निश्चित रूप से चेतेश्वर पुजारा थे। धैर्य के साथ खेले जाने वाले टेस्ट क्रिकेट को पसंद करने वालों के लिए पुजारा उस दौर की याद दिलाते थे जब टी20 क्रिकेट का कोई अस्तित्व ही नहीं था।
पुजारा के पिता अरविंद ने प्रथम श्रेणी के कुछ मैच खेले थे और सीमित संसाधनों के बावजूद चेतेश्वर के लिए उनके सपने बड़े थे। टी20 क्रिकेट की लोकप्रियता के बाद मौजूदा दौर के प्रशंसकों ने पुजारा की बल्लेबाजी को अप्रत्याशित रूप से अपरंपरागत करार दिया लेकिन दायें हाथ के इस बल्लेबाज के पिता ने बचपन में उनके दिमाग में यह बात बैठा दी थी टेस्ट क्रिकेट ही असली क्रिकेट है।
उनकी पत्नी पूजा ने अपनी किताब ‘द डायरी ऑफ ए क्रिकेटर्स वाइफ: एन अनयूजअल मेमॉयर’ में संक्षेप में कहा है, ‘चेतेश्वर पुजारा कम बोलने वाले और भावनाओं का कम इजहार करने वाले व्यक्ति हैं। अगर एक मुस्कान से काम चल सकता है तो वह बोलना पसंद नहीं करते। अगर एक वाक्य तीन शब्दों में खत्म हो सकता है, तो वह एक और शब्द जोड़ने की कोशिश नहीं करेंगे।’ वह टीम के ऐसे ‘भरोसेमंद’ योद्धा थे जिसे आप युद्ध में जाते समय अपने साथ रखना चाहेंगे।
जब कोहली ने कमान संभाली, तो पुजारा जानते थे कि उन्हें क्या करना है। गाबा में जब पंत ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों की बखिया उधेड़ी तो दूसरी ओर पुजारा ना सिर्फ क्रीज पर डटे रहे बल्कि तेज गेंदों की 11 गेंदें अपने शरीर पर झेली। उनकी 211 गेंद में 56 रन की पारी ने उनके व्यक्तित्व को बखूब ही दर्शाया। एक ठोस व्यक्ति, एक मजबूत शरीर और टीम के लिए जरूरी रन। जब ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक जीत के बाद टीम में हर कोई अपनी चमक दिखा रहा था तो वहीं पुजारा के शरीर के घाव ही उनके सम्मान का प्रतीक बन गए। गाबा में पंत की आक्रामक और असाधारण पारी की सफलता का श्रेय भी काफी हद तक पुजारा के उत्कृष्ट और साहसिक बल्लेबाजी को जाता है।