
बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें पाने के लिए दबाव बना रहे लोजपा (आर) के मुखिया चिराग पासवान को राजग में सीटों के बंटवारे के प्रस्तावित फॉर्मूले में लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा। गठबंधन के दो बड़े दलों जदयू-भाजपा के बीच 200 से 205 सीटों पर चुनाव लड़ने पर अंदरखाने बनी सहमति के बाद चिराग पासवान को जल्द ही 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया जाएगा। इस फॉर्मूले के तहत दो अन्य सहयोगियों आरएलएम और हम के लिए 10 से 12 सीटों का प्रस्ताव तैयार किया गया है।
भाजपा सूत्रों ने कहा कि गठबंधन में दलों की संख्या, जमीनी परिस्थिति और कुछ अन्य समीकरणों को साधने की रणनीति के कारण इस फार्मूले में नाममात्र का ही बदलाव संभव है। जदयू-भाजपा ने बीते चुनाव के मुकाबले 20 सीटों का त्याग करने का फैसला किया है। जदयू किसी भी सूरत में सौ से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी नहीं है। भाजपा की भी यही स्थिति है। ऐसे में सहयोगी दलों के लिए अधिकतम 43 सीटें ही बचती हैं।
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पिछले चुनाव में चिराग के कारण गठबंधन को पहुंचा था नुकसान
भाजपा-जदयू के ताजा फॉर्मूले पर निगाहें चिराग पासवान पर अटकी हैं, जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू को बड़ा झटका दिया था। तब राजग के इतर मैदान में उतरी चिराग की पार्टी 135 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इनमें ज्यादातर उम्मीदवार जदयू के खिलाफ उतारे गए थे। चिराग की इस रणनीति के कारण जदयू को सीधे-सीधे 27 सीटों का नुकसान हुआ था। इसके अलावा ऐसी 37 सीटें भी थी, जहां लोजपा के उम्मीदवार के कारण जदयू को सियासी घाटा उठाना पड़ा था।
अलग रुख अपनाने की कम गुंजाइश
बहरहाल, पिछले चुनाव की तरह इस बार चिराग के पास नीतीश के खिलाफ अलग से मोर्चा खोलने का विकल्प नहीं है। राजग में बमुश्किल और बड़ी मशक्कत के बाद शामिल हुए चिराग केंद्र सरकार में मंत्री हैं। जदयू केंद्र सरकार में भाजपा की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी है। ऐसे में अलग मोर्चा खोलने पर चिराग को इस बार भाजपा का अंदरूनी समर्थन नहीं मिलेगा।
लोजपा के संदर्भ में अलग-अलग आकलन
इसमें कोई दो-राय नहीं कि लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी का स्ट्राइक रेट सौ फीसदी रहा है। चुनाव में पार्टी को 29 विधानसभा चुनाव में बढ़त हासिल हुई। पार्टी ने अपने हिस्से की सभी पांच सीटें जीतीं। लेकिन जदयू और भाजपा का मानना है कि चूंकि विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाएगा, इसके कारण सीएम नीतीश कुमार की राज्य में सर्वाधिक अहमियत है। पिछले चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में जदयू के मत प्रतिशत में तीन फीसदी का इजाफा हुआ है।
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नए समीकरण पर भी नजर
विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू की निगाहें पिछले चुनाव में साथी रहे वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी पर भी है। वीआईपी की मल्लाह मतदाताओं पर पकड़ है, जिनका सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल में प्रभाव है। दोनों दल वीआईपी को गठबंधन में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं।