
भारत में हिमालय के क्षेत्रों और उसके आसपास के हिस्सों में यह पौधा ज्यादातर उगता है. पौधे की छाल ग्रे रंग की होती है. वैसे तो इसका उपयोग पारंपरिक तौर से पुराने दस्त, पेट दर्द, सांप काटने के उपचार, दांतों के दर्द और पेचिश सहित हजारों बीमारी के इलाज के लिए किया जाता है. लेकिन इस पौधे की पत्तियों का उपयोग बेरीबेरी (विटामिन बी 1 की कमी के कारण होने वाली बीमारी) के इलाज के लिए किया जाता है.
यह एक ऐसा पौधा है, जिसका उपयोग आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा, तीनों में कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है. दुर्बलता को दूर करने से लेकर खुले घावों को ठीक करने और नपुंसकता से पीलिया तक कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के इलाज में सप्तपर्णी को प्रभावी औषधि के रूप में जाना जाता है.
औषधीय गुणों युक्त है ये पौधा
वैसे तो पौधे के ज्यादातर हिस्से औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, लेकिन इसकी छाल को मलेरिया को ठीक करने के लिए सदियों से प्रयोग में लाया जाता रहा है. सप्तपर्णी, जहां एक ओर कई बीमारियों के इलाज में यह कापी प्रभावी होता है. वहीं, इस पौधे में फर्टिलिटी को बढ़ाने की भी क्षमता होती है.
ऐसे मिला नाम
आयुष विभाग के विशेषज्ञय डॉ ब्रजेश कुलपारिया ने बताया कि सप्तपण एक औषधीय प्लांट है, जिसमें सात पत्तों का गुच्छा होता है, जिस कारण इस पौधे का नाम सप्तपण पड़ गया. वैसे तो इसका उपयोग सर्दी, खांसी और ज्वर में सबसे ज्यादा किया जाता है. वर्ष 2019 में जब पूरा देश कोविड-19 की चपेट में था, तब मरीजों के लिए आयुर्वेदिक मेडिशन आई थी आयुष 64, जिसमे एक कंटेंट सप्तपण का भी था.