सिरसा के रूपावास आश्रम में कंवर साहेब का सत्संग, हजारों की संख्या में प्रेमियों ने सुने अमृत वचन

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सिरसा के रूपावास आश्रम में कंवर साहेब का सत्संग, हजारों की संख्या में प्रेमियों ने सुने अमृत वचन
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रूपावास।। नाथूसरी चौपटा। सत्संग कोई खेल तमाशा या मेला नहीं है बल्कि ये तो अध्यात्म प्रेमियों के लिए इस काल माया से मुक्ति का घाट है। जो भी अमूल्य वस्तु होती है उसके लिए मेहनत भी उतना ही मांगती है।

जब दुनियादारी की छोटी सी छोटी वस्तु भी आप से आपका समय, लग्न और मेहनत मांगती है तो जो वस्तु आपके सम्पूर्ण कल्याण की है उसकी लग्न और मेहनत की तो कोई सीमा ही नहीं है यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने नाथूसरी चौपटा के समीप गांव रूपावास में साध संगत के समक्ष फरमाए।

हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने फरमाया कि जैसे खाली कुआ किसी पथिक की प्यास नहीं बुझा सकता वैसे ही कथनी का गुरु भी कभी किसी का कल्याण नहीं कर सकता।कल्याण तो करनी करने वाला शब्द भेदी ही गुरु ही कर सकता है।

हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि गुरु आपके ज्ञान चक्षु खोल कर आपका विवेक जागृत करते हैं। सन्त अपनी कमाई हुई दौलत को मरहमी जीवो में बांटते है। जिस प्रकार हाथ से फेंका हुआ तीर किसी को घायल नहीं कर सकता।

लक्ष्य भेद हेतु तो तीर को कमान पर चढ़ाना ही होगा। उसी प्रकार ज्ञान केवल थोथी बातों में नहीं आएगा उसके लिए तो हमें अनुभव का गुरु ही धारण करना पड़ेगा। हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि दुनिया के जितने रिश्ते नाते है वो एक न एक दिन टूटने ही वाले है केवल सतगुरु सत्संग और सतनाम से नाता ही अटूट होता है। कितने ही तारे और चांद टिमटिमा लो लेकिन पूर्ण रोशनी सूर्य निकलने से ही होती है।

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हुजूर ने कहा कि कर्म करने से पहले सोचा करो कि ये कर्म आपको किस दिशा में ले जाएगा। शराब कवाब विषय विकारों में हमने अपने कर्म बहुत ज्यादा बिगाड़ लिए हैं।हमारी रूह हंस रूप थी लेकिन हमने अपने मलिन कर्मो से इसे काग रूप बना लिया।

गुरु महाराज जी ने कहा कि चार जून चौरासी लाख यौनियो में उत्तम यौनि इंसान की है और इंसानों में भी उत्तम इंसान वो है जिसने परमात्मा की भक्ति कमाई है। इंसान का बुरा कोई और नहीं कर सकता बल्कि इंसान खुद करता है।जिस नाम सुमिरन से सुख ही सुख मिलते है उस नाम को तो हमने अपने जीवन में आखरी पायदान पर धकेल दिया है।कर्मो का कर्ज तब तक आपके लेखे में लिखा रहता है जब तक उनका पूर्ण हिसाब नहीं हो जाता चाहे कितनी ही यौनि बदल लो।

उन्होंने कहा कि जब तन मन धन सतगुरु को ही सौंप दिया तो आपको उन्हें इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है क्योंकि जो चीज आपकी रही ही नहीं तो आपका उस पर कोई अधिकार भी नहीं है।जब ये गुरु को सौंप ही दिया तो उनका इस्तेमाल भी गुरु ही करेगा। तन मन धन गुरु को ऐसे सौंपो जैसे राजा जनक ने अपने गुरु अष्टावक्र को सौंपे थे।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि गुरु आपके धन का भूखा नहीं है। तन मन धन सौपने का अर्थ है गुरु को बल हार जाना। अगर आप गुरु की मौज में रहकर परमात्मा की भक्ति करोगे तो गुरु आपको शाहों का शाह बना देगा। गुरु ध्यान भजन अभ्यास करना सिखाते हैं। ध्यान लगेगा गुरु वचन मानने से। नौ दरवाजो में फंस कर आशा तृष्ना की लहरों में विषय वासना की डुबकी लगा कर आप कभी भजन नहीं कर सकते। भक्ति है मन वचन कर्म से शुद्ध होना।

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सन्त महात्मा मन वचन और कर्म से पाक पवित्र होते हैं इसलिए चारो दिशा में उनकी ही जागीर है।

हुजूर ने कहा कि वर्तमान युग में मां बाप की जिममेवारी और ज्यादा बढ़ जाती है। माँ बाप को बच्चों की इच्छा नहीं बल्कि जरूरत पूरी करनी चाहिए।खान पान जल वायु प्रकृति को शुद्ध करने की आवश्यकता है।हमें समझना होगा कि हम विकास के नाम पर विनाश की और बढ़ रहे हैं। पहाड़ समुद्र मैदानों को हमने कन्क्रेट की दुनिया में बदल दिया। हम अपनी जरूरतों को नहीं बल्कि जरूरत हमे कंट्रोल कर रही है।

उन्होंने कहा कि अब भी समय रहते चेत जाओ। एक एक सांस की कीमत लाख लाल का मोल है इसलिये इसे वृथा मत खोवो। हर दिन सुबह शाम परमात्मा का शुक्राना करो। सब कुछ देने वाला परमात्मा ही है तो उनका एहसान मानने में कैसी शर्म। घर मे रहो कमा कर खाओ पराई स्त्री और पराए धन से नेह ना लगाओ।

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