आखिर 26 साल बाद कुमारी सैलजा को सिरसा की क्यों आई याद
आखिर 26 साल बाद कुमारी सैलजा को सिरसा की क्यों आई याद

आखिर 26 साल बाद कुमारी सैलजा को सिरसा की क्यों आई याद

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सिरसा। सिरसा संसदीय क्षेत्र में सियासी तापमान भी चढ़ा हुआ है। भाजपा से डा. अशोक तंवर पिछली 14 मार्च से प्रचार में जुटे हैं। कांग्रेस से कुमारी सैलजा एक बार फिर से सिरसा के रण में उतरी हैं। जजपा ने रमेश खटक को, इनैलो ने युवा संदीप लोट को और बसपा ने लीलूराम आसाखेड़ा को मैदान में उतारा है।

बढ़ती गर्मी के बीच प्रचार अभियान तेज है तो चुनावों में मुद्दे भी उछल रहे हैं। अपने और पराये का मुद्दा हावी है। कुमारी सैलजा साल 1988 में पहली बार सिरसा से चुनावी रण में उतरी। उपचुनाव में लोकदल के हेतराम से हार गई। 1991 में लोकदल के हेतराम को हराकर तो 1996 में सोशल एक्शन पार्टी के डा. सुशील इंदौरा को हराकर दूसरी बार सांसद बनीं। 1998 में इंदौरा से चुनाव हारने के बाद सिरसा से किनारा कर गई।

उसके बाद सिरसा से नाता तोड़ लिया। इसके बाद 2004 और 2009 में अंबाला से सांसद चुनी गईं। सांसद रहते हुए हिसार में मकान बनाया।

गुरुग्राम के पॉश इलाके डीएलएफ में फ्लैट खरीदा, सिरसा में कभी निवास नहीं बनाया। इसी तरह से डा. अशोक तंवर 16 मई 2009 को सिरसा से पहली बार सांसद बन गए। इसके बाद उन्होंने सिरसा में अपना स्थायी ठिकाना बनाने की ठान ली। हुडा सैक्टर 20 में मकान के लिए जगह मिल गई। 7 दिसंबर 2009 को 22 लाख 60 हजार रुपए में जगह खरीदी और कुछ माह में मकान बना लिया।

इसके बाद परिवार यहीं रहने लगा। तंवर पिछले 15 वर्षों से सिरसा में ही सक्रिय हैं। ऐसे में यह मुद्दा चुनावों में सबसे प्रभावशाली भी नजर आ रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सिरसा की जनता इस बार किसे देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजती है?

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