
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री को सार्वजनिक करने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के ताजा फैसले ने नई बहस छेड़ दी है। अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें मोदी की स्नातक डिग्री से जुड़े दस्तावेज सामने लाने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह समझ से परे है कि जब बाकी नेताओं की डिग्री सार्वजनिक होती रही है, तो प्रधानमंत्री की डिग्री क्यों गोपनीय रखी जा रही है।
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने सोमवार को यह फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की डिग्री निजी जानकारी है और इसमें कोई “निहित जनहित” दिखाई नहीं देता। अदालत ने स्पष्ट किया कि “जनता की रुचि वाली बात” और “जनहित में होने वाली बात” दोनों अलग-अलग हैं। यह आदेश दिल्ली विश्वविद्यालय की उस याचिका पर आया, जिसमें CIC के निर्देश को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि प्रधानमंत्री सहित किसी भी व्यक्ति की शैक्षणिक जानकारी व्यक्तिगत अधिकारों और गोपनीयता से जुड़ी है।
कांग्रेस ने फैसले पर उठाए सवाल
कांग्रेस ने इस फैसले पर सवाल उठाए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह पूरी तरह से “असमझनीय” है कि देश के प्रधानमंत्री की डिग्री गोपनीय रखी जाए, जबकि बाकी नेताओं की जानकारी हमेशा सार्वजनिक रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि छह साल पहले सरकार ने जानबूझकर सूचना के अधिकार कानून (RTI) में संशोधन करके पारदर्शिता को कमजोर किया था। रमेश ने अपने पुराने भाषण का वीडियो भी साझा किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि “यह संशोधन आरटीआई कानून को खत्म करने वाली गोली है।”
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आरटीआई से शुरू हुआ विवाद
इस पूरे मामले की शुरुआत दिसंबर 2016 में हुई, जब एक आरटीआई कार्यकर्ता नीरज ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978 के स्नातक परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों का रिकॉर्ड देखने की अनुमति मांगी थी। उसी साल पीएम मोदी ने भी स्नातक की परीक्षा पास की थी। सीआईसी ने जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। हालांकि, जनवरी 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उस आदेश पर रोक लगा दी थी। अब कोर्ट ने साफ किया कि शैक्षणिक योग्यता किसी संवैधानिक पद पर बैठने के लिए कानूनी शर्त नहीं है।
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गोपनीयता और जनहित का टकराव
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “सिर्फ इसलिए कि कोई शख्स सार्वजनिक जीवन में है, उससे यह अधिकार नहीं छीन लिया जा सकता कि उसकी निजी जानकारी सबके सामने रखी जाए।” अदालत ने माना कि डिग्री जैसी व्यक्तिगत जानकारी का संबंध सीधे तौर पर सार्वजनिक जिम्मेदारियों से नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षणिक जानकारी जनता के सामने आनी चाहिए। अब यह मामला राजनीतिक विवाद का बड़ा मुद्दा बन गया है।