
विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ने शनिवार को कहा कि देश में लोकतंत्र की स्थिति कमजोर हो गई है और संविधान को चुनौती दी जा रही है। उन्होंने कहा कि वह संविधान की रक्षा और उसे मजबूत करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।
पीटीआई को दिए एक विशेष इंटरव्यू में रेड्डी ने कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने बताया कि उनका नाम कैसे सामने आया। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्दों को लेकर चल रही बहस पर भी राय रखी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से नक्सलवाद समर्थक कहे जाने पर भी जवाब दिया।
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रेड्डी ने कहा कि संसद में व्यवधान भी लोकतंत्र का हिस्सा हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह हमेशा प्रक्रिया का हिस्सा बने। उन्होंने कहा कि पहले हम ‘डिफिसिट इकोनॉमी’ की बात करते थे, लेकिन अब ‘डेमोक्रेसी में डिफिसिट’ यानी लोकतंत्र में कमी की बात हो रही है। भारत भले ही सांविधानिक लोकतंत्र बना हुआ है, लेकिन वह दबाव में है।
रेड्डी ने संविधान पर हो रही बहस का स्वागत किया और कहा कि यह जरूरी है कि लोग समझें कि संविधान पर खतरा है या नहीं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र केवल व्यक्तियों के बीच टकराव नहीं है, बल्कि विचारों के बीच टकराव है। उन्होंने यह भी कहा कि काश सरकार और विपक्ष के बीच बेहतर संबंध होते। गौहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रेड्डी ने कहा कि संविधान की रक्षा करने की उमकी यात्रा अब उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि वह पहले एक जज के तौर पर संविधान की रक्षा कर रहे थे और अब अगर अवसर मिला तो वहीं जिम्मेदारी निभाते रहेंगे।
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’63-64 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं विपक्षी दल’
उन्होंने कहा कि विपक्ष की ओर से उन्हें उम्मीदवार बनाया जाना उनके लिए गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि यह न केवल विविधता को दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विपक्षी दल एक साथ खड़े हैं, जो देश की 63-64 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
‘दो विचारधाराओं के बीच चुनाव’
जब उनसे पूछा गया कि क्या शीर्ष सांविधानिक पदों पर सर्वसम्मति से चुनाव होना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि वह खुद ऐसा चाहते थे, लेकिन आज की राजनीति बहुत बंटी हुई है, इसलिए यह टकराव शायद टालना मुश्किल था। रेड्डी ने कहा कि पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष राष्ट्रीय मुद्दों पर मिलकर काम करते थे, लेकिन आज ऐसा कम देखने को मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह चुनाव उनका और एनडीए के उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन का नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं के बीच है।
‘संसद में व्यवधान लोकतंत्र का हिस्सा’
उन्होंने कहा कि राधाकृष्णन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा से आते हैं, जबकि वह खुद एक उदारवादी और सांविधानिक लोकतंत्र में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं। उनका कहना था कि यह विचारों की लड़ाई है। रेड्डी ने दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली को बयान का जिक्र करते हुए कहा कि संसद में व्यवधान भी विरोध का एक वैध तरीका है। उन्होंने कहा कि अगर किसी को बोलने नहीं दिया जा रहा है, तो यह विरोध का एक तरीका हो सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि व्यवधान लोकतंत्र का स्थायी हिस्सा बन जाए।
‘सुप्रीम कोर्ट का था सलवा जुडूम का फैसला’
जब गृह मंत्री अमित शाह ने उन पर सलवा जुडूम फैसले को लेकर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया, तो रेड्डी ने सीधे प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह फैसला उनका निजी नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का था। उन्होंने कहा कि अगर शाह ने फैसला पढ़ा होता, जो 40 पन्नों का है, तो शायद वे ऐसा बयान नहीं देते।
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जातिगत जनगणना का किया समर्थन
रेड्डी ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया और कहा कि पहले यह पता लगाना जरूरी है कि सहायता किसे चाहिए और कितनी जरूरत है। संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को शामिल करने पर हो रहे विवाद पर रेड्डी ने कहा कि ये शब्द सिर्फ संविधान में पहले से मौजूद मूल विचारों को स्पष्ट करते हैं। उन्होंने कहा कि यह सच है कि ये शब्द आपातकाल के समय 42वें संशोधन के तहत जोड़े गए थे, लेकिन बाद में जनसंघ की सरकार ने भी इन्हें मंजूरी दी थी। इसलिए उन्हें समझ नहीं आता कि इस पर बहस क्यों की जा रही है।
रेड्डी ने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और भीमराव अंबेडकर पर बनी अलग-अलग कहानियों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अगर इन तीनों को सतही तौर पर पढ़ा जाए तो भ्रम हो सकता है, लेकिन असल में तीनों ही लोकतंत्र, गणराज्य और संविधान के नैतिक मूल्यों में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा कि देश के लिए यह अच्छा नहीं होगा कि इन तीनों को अलग-अलग करके देखा जाए।