
आए दिन देश में हो रहे सामाजिक और राजनीतिक बदलावों के बीच आपसी सौहार्द और सामाजिक ताना-बाना कैसा है? इस सवाल पर बात होती है। इसी से जुड़े पहलू पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व लोकसभा सांसद रहे फारूक अब्दुल्ला ने कहा, भारत इस समय एक ‘कठिन दौर’ से गुजर रहा है और मुस्लिम समुदाय में ‘भय’ है। हालांकि, उन्होंने भरोसा जताया कि भारत अपनी धर्मनिरपेक्ष (सेकुलरिज्म) की पहचान कभी नहीं खोएगा। उन्होंने ये टिप्पणी ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पर लिखी किताब “द लायन ऑफ नौशेरा” के विमोचन के दौरान की।किताब के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार- जिया-उस-सलाम और आनंद मिश्रा हैं।
समाज का बड़ा हिस्सा साम्प्रदायिक नहीं है, लेकिन…
फारूक अब्दुल्ला ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित समारोह के दौरान कहा, समाज का बड़ा हिस्सा साम्प्रदायिक नहीं है, लेकिन मौजूदा माहौल में वह दबा हुआ है। उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख कर बताया कि कैसे देश के विभाजन के समय पूर्वजों ने भारत में रहने का फैसला लिया।
पाकिस्तानी हमलावरों का सबने मिलकर सामना किया
बकौल फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अली जिन्ना कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे, पर शेख अब्दुल्ला ने महात्मा गांधी के भारत का रास्ता चुना। 1947-48 में जब पाकिस्तानी हमलावर आए तो कश्मीर के हिंदू, मुस्लिम और सिख समेत तमाम लोगों ने मिलकर उनका सामना किया।
जम्मू-कश्मीर में सीएम चुने जाने के बावजूद उपराज्यपाल के पास क्यों? दिल्ली का ‘वायसराय’…
इतिहास की घटनाओं का उल्लेख करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने वर्तमान राजनीति को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा, आज कश्मीर में चुनी हुई सरकार होते हुए भी असली सत्ता उपराज्यपाल के हाथ में क्यों है? इस फैसले के खिलाफ अपने आक्रोश का इजहार करते हुए पूर्व सीएम ने उपराज्यपाल को दिल्ली का ‘वायसराय’ भी बताया।
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पूर्वजों ने पाकिस्तान को ठुकराया, इतिहास का यह पहलू युवाओं को भी बताने की जरूरत
अब्दुल्ला ने याद दिलाया कि देश के विभाजन के समय शेख अब्दुल्ला ने जिन्ना को दो टूक जवाब दिया था। बकौल अब्दुल्ला, उनके पिता ने अपने जवाब में कहा था कि पाकिस्तान हमारा चुनाव नहीं है। भारत महात्मा गांधी का राष्ट्र है। यहां पंडित, सिख और बौद्ध सब साथ रह सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने आज के दौर में पनप रहे अविश्वास और वैमन्य अफसोस का इजहार करते हुए कहा, जो कहते हैं कि “मुसलमानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता” उन लोगों को हमारे इतिहास से रू-ब-रू कराया जाना चाहिए।
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इन बातों की याद दिलाता है ब्रिगेडियर उस्मान का जीवन
इस कार्यक्रम में पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी भी मौजूद रहे। अंसारी ब्रिगेडियर उस्मान के रिश्तेदार हैं। उन्होंने कहा कि 1948 के युद्ध में ब्रिगेडियर की शहादत भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यह समावेशी धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक भी है। समारोह में मौजूद राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सांसद मनोज झा ने कहा, उस्मान ने विभाजन के समय भारत में रहने का विकल्प चुना और उनका जीवन हमें उस भारत की याद दिलाता है जिसे हमने खो दिया है।