
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बांद्रा रिक्लेमेशन की जमीन पर निजी विकास के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह मामला अदाणी ग्रुप की तरफ से यहां निर्माण कार्य किए जाने को लेकर उठाया गया था। कोर्ट ने कहा कि बांद्रा रिक्लेमेशन की यह जमीन पर्यावरण नियमों के तहत प्रतिबंधित क्षेत्र में नहीं आती, इसलिए यहां पर निजी बिल्डिंग बनाना कानूनी रूप से गलत नहीं है।
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क्या था मामला?
मुंबई के बांद्रा रिक्लेमेशन इलाके में महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमएसआरडीसी) ने एक जमीन के टुकड़े को निजी विकास के लिए मंजूरी दी थी। इस फैसले को लेकर दो याचिकाएं दाखिल की गईं, जिसमें पहली पर्यावरण कार्यकर्ता जोरु बाथेना ने दायर की है और दूसरी बांद्रा रिक्लेमेशन एरिया वॉलंटियर्स ऑर्गनाइजेशन ने दायर की है। याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि इस जमीन पर किसी तरह का निजी विकास न हो, बल्कि इसे हरे-भरे खुले क्षेत्र (ग्रीन स्पेस) के रूप में रखा जाए। उनका तर्क था कि इस तरह का निर्माण कार्य तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) नियमों का उल्लंघन करता है।
सरकार और कंपनियों का पक्ष
अदाणी ग्रुप और पर्यावरण मंत्रालय ने अदालत में कहा कि जिस प्लॉट पर निर्माण होना है, वह सीआरजेड क्षेत्र के बाहर है, इसलिए यहां विकास कार्य करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने भी याचिकाओं का विरोध किया। बीएमसी ने कहा कि उसने 28 एकड़ जमीन पर अदाणी ग्रुप को आवासीय इमारत बनाने की अनुमति दी है, क्योंकि यह जमीन सीआरजेड की सीमा से बाहर आती है।
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बॉम्बे उच्च न्यायालय का फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। अदालत ने माना कि जिस क्षेत्र में विकास का प्रस्ताव है, वह कानूनी तौर पर निर्माण योग्य है और याचिकाकर्ताओं का यह दावा सही नहीं है कि यहां पर्यावरण नियमों का उल्लंघन हो रहा है।