
संसद के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के हंगामे को लेकर संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को कहा कि उन्होंने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से कई बार अनुरोध किया कि लोकसभा और राज्यसभा में चर्चा होने दी जाए, लेकिन उनका प्रयास सफल नहीं हो सका।
उन्होंने कहा, मेरा गला भी बैठ गया देखो। विपक्ष को चिल्ला-चिल्ला कर मैं अनुरोध करता रहा कि बहस होने दीजिए। न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में रिजिजू ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में संसद विपक्ष की भी होती है, क्योंकि उन्हें सरकार से सवाल पूछने का अधिकार होता है। सरकार जवाबदेह होती है, लेकिन अगर विपक्ष सवाल पूछने की जगह हंगामा करने लगे और चर्चा से भागे तो सरकार क्या कर सकती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने विपक्ष से कई बार कहा कि हंगामा न करें, लेकिन बात नहीं बनी। चिल्ला-चिल्ला कर उन्हें कहना पड़ा, इसलिए उनका गला भी बैठ गया।
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विपक्ष बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चर्चा की मांग कर रहा था, लेकिन इस पर कोई सहमति नहीं बनी। इससे संसद के दोनों सदनों में लगातार हंगामा होता रहा और कई बार स्थगन की नौबत आई। मानसून सत्र के दौरान लोकसभा की उत्पादकता केवल 31 फीसदी और राज्यसभा की 39 फीसदी रही। लोकसभा में कुल 120 घंटों में से केवल 37 घंटे चर्चा हो सकी, जबकि राज्यसभा में 41 घंटे 15 मिनट तक ही चर्चा हुई। इस सत्र में कुल 15 विधेयक पास हुए।
रिजिजू ने कहा कि यह सत्र देश के नजरिए से सफल रहा, लेकिन विपक्ष के दृष्टिकोण से असफल। उन्होंने कहा कि यदि विपक्ष ने नैतिकता को महत्व दिया होता, तो वे भी संविधान संशोधन विधेयक का स्वागत करते। यह विधेयक प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी अन्य मंत्री को गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत में लिए जाने की स्थिति में पद से हटाने का प्रावधान करता है। इसी तरह के दो और विधेयक पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर के लिए भी लोकसभा में पेश किए गए हैं। इन तीनों विधेयकों की समीक्षा एक संयुक्त संसदीय समिति करेगी।
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रिजिजू ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा कि उन्हें (प्रधानमंत्री को) इस कानून से छूट नहीं चाहिए। पीएम ने कहा कि वह भी एक नागरिक हैं और उनके लिए भी कोई विशेष सुरक्षा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हमारी पार्टी के मुख्यमंत्री कुछ गलत करते हैं, तो उन्हें भी पद छोड़ना होगा। यही नैतिकता है। अगर विपक्ष ने भी नैतिकता को केंद्र में रखा होता, तो वह इस विधेयक का समर्थन करता।
उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सिफारिशों के खिलाफ जाकर खुद को भी कानून के दायरे में रखा है। अगर प्रधानमंत्री भी भ्रष्टाचार करते हैं, तो उन्हें भी जेल जाना पड़ेगा और पद छोड़ना होगा। मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्री…कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। फिर विपक्ष को इसमें क्या आपत्ति है? देश इस क्रांतिकारी विधेयक का स्वागत कर रहा है।
राहुल को बोलना नहीं आता
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यदि राहुल गांधी बोल नहीं सकते या उन्हें बोलना नहीं आता तो इसका मतलब यह नहीं कि दूसरों को भी बोलने नहीं दिया जाना चाहिए। हमने कांग्रेस पार्टी से हाथ जोड़कर अनुरोध किया है कि वह चर्चा में शामिल हो। कांग्रेस में कई ऐसे सदस्य हैं जो अच्छा बोल सकते हैं और जानकार भी हैं। अगर मैं किसी का नाम लूंगा तो उन्हें दिक्कत होगी। उन्होंने यह भी कहा कि मैं राहुल गांधी को सुधारने वाला कोई नहीं हूं। वह सुनेंगे भी नहीं। जब राहुल संसद में बोलते हैं तो उनकी अपनी पार्टी के सांसद असहज हो जाते हैं और उन्हें डर लगता है कि वह अनाप-शनाप बातें करेंगे और पार्टी को इसके परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राहुल अपनी ही पार्टी के सदस्यों की नहीं सुनते हैं। लोकतंत्र में विपक्ष को मजबूत होना चाहिए लेकिन वे एक मजबूत विपक्ष की तो बात ही छोड़िए, विपक्ष के बुनियादी कर्तव्य भी नहीं निभा पा रहे हैं।
मोदी ने पीएम को संशोधन बिल से बाहर रखने की सिफारिश नहीं मानी
रिजिजू ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट को बताया था कि इस संविधान संशोधन विधेयक से प्रधानमंत्री को बाहर रखने की सिफ़ारिश की गई है, लेकिन वह इससे सहमत नहीं हैं। पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री पद को बाहर रखने से इन्कार कर दिया। प्रधानमंत्री भी एक नागरिक हैं और उन्हें विशेष सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए। ज्यादातर मुख्यमंत्री हमारी पार्टी से हैं। अगर वे कुछ गलत करते हैं तो उन्हें अपना पद छोड़ना होगा। नैतिकता का भी कुछ मतलब होना चाहिए। अगर विपक्ष नैतिकता को केंद्र में रखता तो वे इस विधेयक का स्वागत करते।
कोई भी पद, चाहे वह मुख्यमंत्री हो, प्रधानमंत्री हो या केंद्रीय मंत्री, कानून से ऊपर नहीं हो सकता। विपक्ष को क्या आपत्ति है? देश इस क्रांतिकारी विधेयक का स्वागत कर रहा है।