
मध्य प्रदेश में बीते 22 साल में अगर 15 महीनों को निकाल दिया जाए तो राज्य में भाजपा का वर्चस्व कभी कम होता नहीं दिखा। आलम यह रहा कि 2018 में जब कांग्रेस ने लंबे समय बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की तो उसके और भाजपा के बीच सीटों का अंतर सिर्फ इतना ही था कि किसी एक बड़े नेता का पार्टी से अलग होना पूरी सरकार के गिरने का कारण बन जाता। हुआ भी कुछ ऐसा ही और 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जैसे ही कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंका, कांग्रेस की सरकार महज एक साल से कुछ ज्यादा समय बिताकर सत्ता से फारिग हो गई।

मजेदार बात यह है कि इस घटना को अब लगभग पांच साल हो चुके हैं। लेकिन कांग्रेस के अंदरखानों में तब की सरकार जाने का दर्द अब भी बाकी है।