

देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड गाड़ियों को लेकर चल रही बहस के बीच नीति आयोग अब यह तय करने में जुटा है कि इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी), हाइब्रिड और पारंपरिक (पेट्रोल-डीजल) वाहनों – इन तीनों में से किस तकनीक से सबसे कम प्रदूषण होता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग इन सभी विकल्पों के लाइफसाइकल एमिशन यानी इनके बनने से लेकर खत्म होने तक के कुल प्रदूषण की जांच कर रहा है। ताकि यह पता लगाया जा सके कि पर्यावरण के लिहाज से सबसे साफ तकनीक कौन सी है।
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Electric Car
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हाइब्रिड को सब्सिडी देने पर बंटा है उद्योग जगत
यह पहल ऐसे वक्त पर हो रही है जब ऑटोमोबाइल कंपनियों के बीच इस बात पर बहस चल रही है कि क्या हाइब्रिड गाड़ियों को भी उतनी ही सरकारी सब्सिडी मिलनी चाहिए जितनी ईवी को मिलती है। फरवरी 2024 में नीति आयोग के चेयरमैन बीवीआर सुब्रह्मण्यम के साथ हुई एक बैठक में ईवी कंपनियों ने मांग की थी कि राज्यों को निर्देश दिया जाए कि वे ईवी के लिए परमिट की सीमा हटाएं, क्योंकि ये सीमाएं कंपनियों की बिक्री में रुकावट डाल रही हैं। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार, उस बैठक में नीति आयोग प्रमुख ने उद्योग से कहा कि अब और सब्सिडी की उम्मीद न रखें।
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नई स्कीम से मिल रही है सब्सिडी, लेकिन नहीं रहेगी हमेशा
1 अक्तूबर 2024 से केंद्र सरकार ने ‘पीएम ई-ड्राइव स्कीम’ की शुरुआत की है, जिसके तहत इलेक्ट्रिक वाहनों को सब्सिडी देने के लिए 10,900 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। यह योजना 31 मार्च 2026 तक लागू रहेगी। वाहन निर्माताओं का कहना है कि 2026 के बाद दोपहिया और तिपहिया ईवी पर दी जाने वाली सब्सिडी को बंद किया जा सकता है। लेकिन राज्यों को परमिट की सीमाएं खत्म करने के लिए केंद्र को आगे आना चाहिए।
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Electric Car Charging
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ईवी का उत्पादन और स्क्रैपिंग भी करता है प्रदूषण
ईवी को लेकर आम धारणा है कि वे जीरो टेलपाइप एमिशन करते हैं यानी चलते वक्त धुआं नहीं छोड़ते। लेकिन 2023 में आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन ने यह दिखाया कि ईवी के निर्माण, उपयोग और स्क्रैपिंग (जैसे-जैसे वे बेकार होती हैं) के दौरान कुल मिलाकर उनसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, बनिस्बत हाइब्रिड या पारंपरिक वाहनों के। यानी ईवी भी पूरी तरह प्रदूषण-मुक्त नहीं हैं।
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भारत में ईवी की स्थिति और भविष्य की योजना
पूरी दुनिया में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी क्रांति का दौर चल रहा है, और भारत भी पीछे नहीं है। फिलहाल भारत में लगभग 7.5 लाख ईवी ही हैं, जो कुल वाहनों का एक छोटा हिस्सा है। लेकिन सरकार ने 2030 तक सभी गाड़ियों में 30 प्रतिशत बिक्री इलेक्ट्रिक बनाने का लक्ष्य तय किया है। यह लक्ष्य पेरिस जलवायु समझौता के तहत तय किए गए कार्बन कटौती के प्रयासों से जुड़ा है, जिससे वैश्विक तापमान को सीमित किया जा सके।
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