
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज अभय ओका ने शुक्रवार को कहा कि कुछ लोग मान सकते हैं कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली दोषपूर्ण है, लेकिन फिर हमें एक बेहतर प्रणाली खोजने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि कोई भी प्रणाली पूरी तरह से पूर्ण नहीं हो सकती। यह बात उन्होंने ‘सरकार को जवाबदेह ठहराना: एक स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस की भूमिका’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही।
वर्तमान प्रणाली के तहत वरिष्ठतम जजों का एक कॉलेजियम केंद्र सरकार को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति के सुझाव देता है। जस्टिस ओका ने कहा, कोई कह सकता है कि कॉलेजियम प्रणाली गलत है, लेकिन फिर हमें एक बेहतर प्रणाली विकसित करनी होगी जो मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की जगह ले सके।
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उन्होंने आगे कहा, कोई भी प्रणाली पूर्ण नहीं होती। हर प्रणाली में खामियां होती हैं। न्यायपालिका में भी कमियां हैं, कार्यपालिका में भी। इसलिए हमें एक बेहतर प्रणाली खोजनी होगी…एक बेहतर प्रणाली विकसित करनी होगी। उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज और कुछ जजों की नियुक्ति में देरी के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि नियुक्ति में देरी कॉलेजियम की ओर से सिफारिश करने के बाद होती है।
उन्होंने बताया कि एक कोर्ट का फैसला है, जिसमें कहा गया है कि अगर सरकार को किसी नाम पर आपत्ति हो, तो वह उस नाम को फिर से कॉलेजियम के पास विचार के लिए वापस भेज सकती है। मतलब, सरकार को फैसला टालने या पूरी तरह से नजरअंदाज करने का अधिकार नहीं है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह कोर्ट का फैसला अभी सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है।
स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के बारे में बात करते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि कोई भी जज उस बात को पसंद नहीं कर सकता जो किसी ने कही या लिखी हो, चाहे वह बात किसी राजनेता ने कही हो या कोई स्टैंड-अप कॉमेडियन ने। लेकिन एक जज के रूप में मेरी जिम्मेदारी केवल यह देखना है कि क्या कोई कानून या मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है या नहीं। मैं केवल एक मजबूत फैसला लिख सकता हूं और मेरी जिम्मेदारी वहीं खत्म हो जाती है। उन्होंने मीडिया की भूमिका पर कहा कि मीडिया के पास जनता की राय या धारणा को बनाने, बदलने की ताकत होती है, इसलिए वह यह तय कर सकता है कि क्या सही है और क्या गलत।