
उपराष्ट्रपति चुनाव में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी के खिलाफ नक्सली हिंसा पीड़ित उतर आए हैं। कुछ पीड़ितों ने कांग्रेस और विपक्ष को पत्र लिखकर उपराष्ट्रपति चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी का समर्थन न करने की मांग की है। पीड़ितों ने आरोप लगाया कि सलवा जुडूम को खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी सहित पीठ के फैसले से नक्सली हिंसा फिर से शुरू हो गई है।
अपने पत्र में हिंसा पीड़ित सियाराम रामटेके ने कहा कि वह कांकेर के चारगांव में उप सरपंच थे और नक्सलियों ने उन्हें कई बार गोली मारी थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सलवा जुडूम को भंग करने के फैसले के बाद नक्सलियों ने हिंसा बढ़ा दी थी। सलवा जुडूम जनजातीय आबादी का एक संगठन था, जो पुलिस के साथ मिलकर उग्रवादियों के खिलाफ काम करता था। उन्होंने मुझे मरा हुआ समझकर छोड़ दिया। मैं अभी भी एक शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति का जीवन जी रहा हूं। मेरे जैसे हजारों लोग मानते हैं कि यदि सलवा जुडूम को भंग नहीं किया गया होता तो नक्सलवाद बहुत पहले ही समाप्त हो गया होता।
उन्होंने विपक्षी सांसदों से अपील की कि वे ऐसे उम्मीदवार को वोट न दें, जिसके फैसले के कारण उन्हें उग्र हिंसा का सामना करना पड़ा।
एक अन्य पत्र में अशोक गंडामी नामक व्यक्ति ने कहा कि वह एक लड़की का चाचा और अभिभावक है, जिसने एक आईईडी विस्फोट में अपना एक पैर खो दिया था और सलवा जुडूम फैसले के बाद नक्सलियों के उसके पिता की हत्या कर दिए जाने के बाद वह अनाथ हो गई थी। यह सब न्यायमूर्ति रेड्डी (सेवानिवृत्त) के फैसले के कारण हुआ। यह फैसला उस समय आया जब वामपंथी हिंसा हार के कगार पर थी और यह फैसला जनजातीय आबादी की पीड़ा को ध्यान में रखे बिना नक्सल समर्थकों की दलील पर दिया गया।
उन्होंने कहा कि यह आंदोलन नक्सलियों के खिलाफ आदिवासी आबादी के लिए एक सुरक्षा कवच था। जिन्होंने स्कूलों, सड़कों और बिजलीघरों को नष्ट कर दिया तथा हजारों लोगों को मार डाला और घायल कर दिया। जिन लोगों ने स्कूल और अस्पताल बनाने की बात कही, उन्हें फांसी दे दी गई। गंडामी ने विपक्षी सांसदों से भी अपील की कि वे उन्हें दिए जा रहे समर्थन पर पुनर्विचार करें। क्या कांग्रेस बस्तर में शांति के खिलाफ है?
अमित शाह ने लगाए थे आरोप
पीड़ितों के पत्र ऐसे समय में आए हैं जब गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा ने विपक्षी उम्मीदवार रेड्डी पर तीखा हमला बोला। शाह ने उन पर 2011 के अपने आदेश के जरिये नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया है। शाह ने कहा था कि सुदर्शन रेड्डी वह व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला सुनाया। अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं सुनाया गया होता तो नक्सली आतंकवाद 2020 तक खत्म हो गया होता। वह वह व्यक्ति हैं जो सलवा जुडूम पर फैसला देने वाली विचारधारा से प्रेरित थे।
बी सुदर्शन रेड्डी ने दिया जवाब
इस पर उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी ने कहा था कि वह गृह मंत्री के साथ मुद्दों पर बहस नहीं करना चाहते, क्योंकि यह फैसला उनका नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर शाह ने पूरा फैसला पढ़ा होता, तो वे ऐसी टिप्पणी नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों सहित 18 पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह ने रेड्डी का समर्थन करते हुए कहा कि यह निर्णय कहीं भी न तो स्पष्ट रूप से और न ही इसके पाठ के निहितार्थों के माध्यम से नक्सलवाद या इसकी विचारधारा का समर्थन करता है।
क्या था सलवा जुडूम पर 2011 का फैसला
बता दें कि दिसंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रेड्डी ने फैसला सुनाया था कि माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में आदिवासी युवकों को विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में इस्तेमाल करना, चाहे उन्हें कोया कमांडो कहा जाए, सलवा जुडूम कहा जाए या किसी और नाम से जान जाए, गैरकानूनी और असांविधानिक है। उन्होंने यह भी आदेश दिया था कि ऐसे आदिवासी युवकों को तुरंत निरस्त्र किया जाए।